फ़र्ज़ी ख़बरों को रोकने जा रहा है फ़ेसबुक?

अब आपकी फ़ेसबुक फ़ीड पर वो ख़बरें दिखाई देंगी जो भरोसेमंद स्रोत से आती हैं. फ़ेसबुक ने एलान किया है कि वो ऐसी ख़बरों को न्यूज़फीड में पहली प्राथमिकता देगा.
कंपनी ने कहा है कि सोशल नेटवर्क कम्युनिटी ये तय करेगी कि कौन से समाचार स्रोत भरोसेमंद हैं और इसके लिए वो यूज़र सर्वे का इस्तेमाल करेगी.
फ़ेसबुक के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क ज़करबर्ग ने कहा है कि बहुत जल्दी फ़ेसबुक पर लोगों की न्यूज़फीड पर दिखने वाली सामग्री में से 4 फ़ीसदी ख़बरें होंगी जो कि पहले से 5 फ़ीसदी कम है.
कंपनी की कोशिश है कि फ़ेक न्यूज़ और प्रोप्रेगेंडा वाली ख़बरों पर लगाम कसी जाए.
फ़ेक न्यूज़ के ख़िलाफ़, अपनी मुहिम को आगे बढ़ाते हुए ट्विटर ने भी शुक्रवार को घोषणा की कि उन्होंने 2016 के अमरीकी राष्ट्रपति चुनावों के दौरान रूसी बॉट अकाउंट से किए गए ट्वीट को लाइक, रीट्वीट और उन्हें फॉलो करने वाले 6,77,775 अमरीकी ट्विटर यूज़र्स को आगाह किया था.
माना जा रहा है कि ये बदलाव फ़ेसबुक पर लग रहे पक्षपातपूर्ण रवैये और झूठी ख़बरों को ना पहचान सकने के आरोपों के चलते हो रहा है.
फ़ेसबुकइमेज कॉपीरइटDOMINIC LIPINSKI/PA WIRE

ज़करबर्ग ने क्या कहा?

ज़करबर्ग ने कहा, "हम नए बदलाव पर फ़ैसला ख़ुद ले सकते हैं, लेकिन ऐसा करने में हम सहज नहीं हैं.
  • हमें लगता है कि हमें बाहर के जानकारों से भी राय लेनी चाहिए और ऐसा करने से फ़ैसला हमारे हाथों में नहीं रहेगा. लेकिन इसके कारण निष्पक्षता की समस्या को सुलझाया जा सकेगा.
  • या फिर हम आपसे यानी कम्युनिटी से भी तो पूछ सकते हैं- और आपसे मिली राय रैंकिंग के ज़रिए निर्धारित की जा सकती है. जैसा हम पहले भी करते आए हैं.''
इसके तहत फ़ेसबुक यूज़र्स से विज्ञापनों के बारे में पूछा जाएगा कि क्या वो ख़बरों के उस ब्रांड को पहचानते हैं और उस पर भरोसा करते हैं.
फ़ेसबुक के इस सिद्धांत का बड़े पैमाने पर परीक्षण किया जाना है क्योंकि एक तरफ जहां ख़बरों के कई स्रोत हैं जो पक्षपातपूर्ण ख़बरें देते हैं और उनको पसंद करने वाले और भरोसेमंद मानने वाले लोग हैं, वहीं छोटा- सा समूह है ऐसे स्रोतों का है जिन्हें काफ़ी लोग "मोटे तौर पर भरोसेमंद" मानते हैं चाहे उनका झुकाव किसी ख़ास विचारधारा के प्रति हो.
ज़करबर्गइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

ज़करबर्ग का नए साल का संकल्प

ज़करबर्ग ने लिखा, "आज जिस दुनिया में हम रहते हैं वहां सनसनीखेज ख़बरें देना, ग़लत जानकारी देना और ध्रुवीकरण बड़ी समस्या है." हाल में ज़करबर्ग ने कहा था कि न्यूज़, बिज़नेस, ब्रांड और मीडिया संबंधी फ़ीड के मामले में फ़ेसबुक कुछ बड़े बदलाव करने जा रहा है.
ज़करबर्ग ने नए साल के लिए संकल्प लिया था कि वो फेसबुक की समस्याओं के समाधान निकालने की पूरी कोशिश करेंगे. उनका कहना था, "हमारे समुदाय को नफ़रत और दुर्व्यवहार से बचाना, राष्ट्रों के दख़ल से फ़ेसबुक को बचाना और यह सुनिश्चित करना कि फ़ेसबुक पर बिताया गया समय आपका कीमती समय हो."
ज़करबर्ग का कहना है, "पहले के मुकाबले सोशल मीडिया के ज़रिए लोग तेज़ी से एक-दूसरे के साथ ख़बरें शेयर कर रहे हैं और हमारे पास इस तरह की समस्याओं से जूझने के पर्याप्त साधन नहीं हैं और हम उन्हें बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर देते हैं."
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कौन जीता कौन हारा?

इस नई रैंकिंग व्यवस्था को सबसे पहले अमरीकी फ़ेसबुक यूज़र्स के साथ टेस्ट किया जाएगा और इस सर्वे के परिणामों को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा.
फ़ेसबुक के एक प्रवक्ता ने बीबीसी को बताया, "यह न्यूज़फीड रैंकिंग में जाने वाले कई संकेतों में से एक है. हम किसी व्यक्ति ने भरोसे के साथ जो स्कोर शेयर किया है वो हम सार्वजनिक करने की योजना नहीं बना रहे हैं क्योंकि इससे किसी व्यक्ति की न्यूज़फीड में दिखने वाली हर कहानी पूरी तस्वीर पेश नहीं करती.''
फ़ेसबुक हो या कोई और बड़ी वेब सर्विस- एल्गोरिदम में किसी भी तरह के बदलाव करने से कुछ लोगों को फ़ायदा होता है और कुछ को नुक़सान.
लंबे इतिहास वाले पारंपरिक मीडिया संगठन, न्यूयॉर्क टाइम्स या बीबीसी जैसी कंपनियों को इससे काफ़ी फ़ायदा मिल सकता है.
लेकिन उभरते हुए ब्रांड इससे बुरी तरह प्रभावित होंगे क्योंकि वो मज़बूत नहीं हैं. फिर चाहे वो भरोसेमंद सामग्री शेयर कर रहे हों या नहीं.

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